Saturday, September 15, 2018

सुप्रीम कोर्ट : दहेज कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए दहेज उत्पीड़न में तत्काल गिरफ्तारी से रोक


: बिहार न्यूज़ टीम 

परिवार कल्याण समिति की रिपोर्ट संबंधी अपने पूर्व आदेश में किया संशोधन

नई दिल्ली| दहेज उत्पीड़न के मामलों में पति और उसके परिवार वालों को तत्काल गिरफ्तारी से मिला संरक्षण समाप्त हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने दहेज कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए पिछले वर्ष जारी किए गए अपने दिशानिर्देशों में बदलाव करते हुए दहेज उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के लिए परिवार कल्याण समिति गठित करने और समिति की रिपोर्ट आने तक गिरफ्तारी न करने का निर्देश रद कर दिया है। यानि अब अगर पुलिस को गिरफ्तारी का पर्याप्त आधार लगता है तो वह आरोपित को गिरफ्तार कर सकती है। हालांकि कोर्ट ने पुलिस को सचेत किया है कि वह जरूरी और पर्याप्त आधार होने पर ही गिरफ्तारी करेगी। साथ ही कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी से संरक्षण के लिए अग्रिम जमानत का विकल्प है।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र, एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय पीठ ने यह फैसला पिछले वर्ष दो न्यायाधीशों की पीठ के 27 जुलाई के राजेश शर्मा फैसले में संशोधन करते हुए दिया है। कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न में दंड का विधान करने वाली आइपीसी की धारा 498ए के प्रावधान और उसके दुरुपयोग पर चर्चा करते हुए कहा कि आरोपित कोर्ट में यह स्थापित करते हैं कि उन्हें प्रताड़ित करने और बदला लेने के लिए कानून का दुरुपयोग किया गया है। लेकिन दुरुपयोग रोकने के लिए प्रावधान हैं। यहां तक कि कानून का संतुलन कायम करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया निरस्त करने का भी प्रावधान है।

कई बार दिमाग का इस्तेमाल नहीं करतीं जांच एजेंसियां

कोर्ट ने पूर्व आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि हर जिले में परिवार कल्याण समिति गठित करने का आदेश कानून सम्मत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि विधायिका ने धारा 498ए को सं™ोय और गैरजमानती अपराध बनाया है। कमी जांच एजेंसियों की है जो कि कई बार दिमाग का इस्तेमाल किए बगैर कार्रवाई कर बैठती हैं। सुप्रीम कोर्ट गिरफ्तारी के बारे में कई फैसलों में व्यवस्था तय कर चुका है। अरनेश कुमार मामले में गिरफ्तारी के बारे में सीआरपीसी की धारा 41 और 41ए के प्रावधानों का पालन करने को कहा गया है। ये धाराएं कहती हैं कि सात साल तक की सजा के अपराधों में पुलिस जरूरी होने पर ही गिरफ्तारी करेगी।

जमानत संबंधी पूर्व आदेश को ठहराया सही : 

कोर्ट ने पूर्व आदेश में दी गई इस व्यवस्था को सही ठहराया कि धारा 498ए में जमानत अर्जी पर विचार करते समय उचित शर्ते लगाई जा सकती हैं, लेकिन दहेज के विवादित सामान की बरामदगी न होना जमानत नकारने का आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि पूर्व फैसले में मामला दर्ज होने के बाद समझौते से मामला निपटाने की व्यवस्था देना सही नहीं है। क्योंकि जो आपराधिक मामला कानूनन समझौते योग्य नहीं है उसे रद कराने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करनी पड़ती है। पीठ ने कहा कि जब दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाए तो वे हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकते हैं और हाई कोर्ट उसे सही पाने पर मामला निरस्त कर सकता है।

No comments:

Post a Comment

Saturday, September 15, 2018

सुप्रीम कोर्ट : दहेज कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए दहेज उत्पीड़न में तत्काल गिरफ्तारी से रोक


: बिहार न्यूज़ टीम 

परिवार कल्याण समिति की रिपोर्ट संबंधी अपने पूर्व आदेश में किया संशोधन

नई दिल्ली| दहेज उत्पीड़न के मामलों में पति और उसके परिवार वालों को तत्काल गिरफ्तारी से मिला संरक्षण समाप्त हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने दहेज कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए पिछले वर्ष जारी किए गए अपने दिशानिर्देशों में बदलाव करते हुए दहेज उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के लिए परिवार कल्याण समिति गठित करने और समिति की रिपोर्ट आने तक गिरफ्तारी न करने का निर्देश रद कर दिया है। यानि अब अगर पुलिस को गिरफ्तारी का पर्याप्त आधार लगता है तो वह आरोपित को गिरफ्तार कर सकती है। हालांकि कोर्ट ने पुलिस को सचेत किया है कि वह जरूरी और पर्याप्त आधार होने पर ही गिरफ्तारी करेगी। साथ ही कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी से संरक्षण के लिए अग्रिम जमानत का विकल्प है।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र, एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय पीठ ने यह फैसला पिछले वर्ष दो न्यायाधीशों की पीठ के 27 जुलाई के राजेश शर्मा फैसले में संशोधन करते हुए दिया है। कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न में दंड का विधान करने वाली आइपीसी की धारा 498ए के प्रावधान और उसके दुरुपयोग पर चर्चा करते हुए कहा कि आरोपित कोर्ट में यह स्थापित करते हैं कि उन्हें प्रताड़ित करने और बदला लेने के लिए कानून का दुरुपयोग किया गया है। लेकिन दुरुपयोग रोकने के लिए प्रावधान हैं। यहां तक कि कानून का संतुलन कायम करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया निरस्त करने का भी प्रावधान है।

कई बार दिमाग का इस्तेमाल नहीं करतीं जांच एजेंसियां

कोर्ट ने पूर्व आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि हर जिले में परिवार कल्याण समिति गठित करने का आदेश कानून सम्मत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि विधायिका ने धारा 498ए को सं™ोय और गैरजमानती अपराध बनाया है। कमी जांच एजेंसियों की है जो कि कई बार दिमाग का इस्तेमाल किए बगैर कार्रवाई कर बैठती हैं। सुप्रीम कोर्ट गिरफ्तारी के बारे में कई फैसलों में व्यवस्था तय कर चुका है। अरनेश कुमार मामले में गिरफ्तारी के बारे में सीआरपीसी की धारा 41 और 41ए के प्रावधानों का पालन करने को कहा गया है। ये धाराएं कहती हैं कि सात साल तक की सजा के अपराधों में पुलिस जरूरी होने पर ही गिरफ्तारी करेगी।

जमानत संबंधी पूर्व आदेश को ठहराया सही : 

कोर्ट ने पूर्व आदेश में दी गई इस व्यवस्था को सही ठहराया कि धारा 498ए में जमानत अर्जी पर विचार करते समय उचित शर्ते लगाई जा सकती हैं, लेकिन दहेज के विवादित सामान की बरामदगी न होना जमानत नकारने का आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि पूर्व फैसले में मामला दर्ज होने के बाद समझौते से मामला निपटाने की व्यवस्था देना सही नहीं है। क्योंकि जो आपराधिक मामला कानूनन समझौते योग्य नहीं है उसे रद कराने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करनी पड़ती है। पीठ ने कहा कि जब दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाए तो वे हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकते हैं और हाई कोर्ट उसे सही पाने पर मामला निरस्त कर सकता है।

No comments:

Post a Comment

Download Bihar Today App